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सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई में क्रिकेटर्स को लेकर दाखिल याचिका को किया खारिज, यहां जाने क्या है पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट ने मुंबई में क्रिकेटर्स को लेकर दाखिल याचिका को किया खारिज, यहां जाने क्या है पूरा मामला

Supreme Court of India [Photo for representation purpose only.] (Photo Source: Twitter)

सुप्रीम कोर्ट ने आज यानी 6 सितंबर को मुंबई के सभी स्टेडियम में क्रिकेटर्स के लिए शौचालय की सुविधा की मांग वाली जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया है। न्यायमूर्ति अभय ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की खंडपीठ ने इस मामले में जनहित याचिका दायर करने के याचिकाकर्ता के अधिकार पर भी सवाल उठाया है।

जस्टिस ए एस ओका और जस्टिस AG मसीह की बेंच ने कहा, ‘यह किस तरह की जनहित याचिका है? यदि क्रिकेटर्स के लिए शौचालय नहीं हैं तो वे खुद ही इसे देख लेंगे।’

सुप्रीम कोर्ट (SC) की डबल बेंच एक वकील द्वारा दायर उस जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई कर रही थी। जिसका निपटारा हाई कोर्ट ने पिछले साल जून में कर दिया था। फिर भी अपनी PIL को किसी अंजाम तक पहुंचाने के लिए जब वकील ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, तो मुकदमों की भीड़ पर चिंता जताते हुए जज ने सख्त टिप्पणी करते हुए याचिका खारिज कर दी।

वकील ने अपनी PIL में मुंबई क्रिकेट संघ (MCB) और भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) को सार्वजनिक मैदानों पर अभ्यास या अनौपचारिक मैच के दौरान खिलाड़ियों को पेयजल और अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने के निर्देश देने संबंधी अनुरोध किया था।

PIL को खारिज करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा

सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘आपने जो तस्वीरें संलग्न की हैं जरा उन्हें देखिए। मुंबई के इन्हीं मैदानों ने देश को महानतम क्रिकेटर दिए हैं…’ पीठ ने याचिकाकर्ता से यह भी पूछा कि क्या वह मुख्य रूप से क्रिकेटर है या वकील, इस पर याचिकाकर्ता ने कहा, ‘मैं वकील हूं।’ यह सुनकर बेंच ने कहा, ‘जनहित याचिका में ये किस प्रकार की अपील की गई है? आप चाहते हैं कि मुंबई के विभिन्न मैदानों में क्रिकेटर्स को शौचालय उपलब्ध कराए जाएं।’ शीर्ष अदालत ने कहा- ‘बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay High Court) का फैसला सही था कि जनहित याचिका सुनवाई योग्य नहीं हैं।’

सुनवाई का समापन करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के इस फैसले को बरकरार रखा कि जनहित याचिका विचारणीय नहीं है, इस बात पर जोर देते हुए कि उठाए गए मुद्दे न्यायिक हस्तक्षेप की मांग नहीं करते हैं और संबंधित खेल निकायों द्वारा खुद ही बेहतर तरीके से निपटाए जा सकते हैं।

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